-रमेश ठाकुर-
मौसम के बदलते मिजाज में लगातार हो रहे परिवर्तन ने सबको हैरान कर दिया है। कुदरत ने दशकों बाद ऐसा मौका दिया, जब बीते फरवरी माह में बेतहाशा बेमौसम की बारिश हुई। कुछ समय से रुक-रुककर हो रही बारिश ने समूचे भारत का मौसम सुहावना कर दिया है। मौसम विभाग के मुताबिक बारिश होने की संभावना अभी कुछ सप्ताह और भी बनी रहेगी। दुख इस बात का है कि बेमौसम हुई बारिश का जल संग्रह नहीं किया जा सका। जलाशय न होने के कारण पिछले एक माह से हो रही बारिश का पानी लगभग बेकार चला गया। हालांकि इस बारिश से दो फायदे जरूर हुए। पहला, कराहते पर्यावरण के लिए यह पानी नया जीवन देने वाला है। दूसरा, बदलते मौसम के मिजाज से न सिर्फ प्रदूषित हो रहे शहरों को इसने राहत दी बल्कि दूषित पर्यावरण को भी काफी हद तक संतुलित किया।
हालांकि इस बारिश से ग्रामीण अंचल में कुछ नुकसान भी हुआ है। कई जगहों पर पड़े तेज ओलों ने फसलों का नुकसान किया है। गौरतलब है कि बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए कागजी कोशिशें बहुत होती हैं। वर्षा का पानी जलाशयों में जमा हो सके, इसे लेकर सरकारें प्रचार-प्रसार पर भी जमकर पैसा बहाती रही हैं। इसके बावजूद नतीजा शून्य निकलता है। इस वक्त देश के जलाशय तकरीबन सूखने की कगार पर हैं। करीब दशक भर पहले खेतीबाड़ी के लिए पानी की कमी न हो, इसके लिए कई विशाल जलाशय बनाए गए थे। इनको सिंचाई, विद्युत और पेयजल की सुविधा के लिए हजारों एकड़ वन और सैकड़ों बस्तियों को उजाड़कर बनाया गया था मगर वे सभी दम तोड़ रहे हैं।
बर्बाद होते पानी को देखते हुए केंद्र सरकार ने सभी जलाशकों व जल संग्रहण संसाधनों की नवीनतम रिपोर्ट जल मंत्रालय को मुहैया कराने का आदेश दिया है। रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार नए सिरे से सभी जलाशयों की समीक्षा करेगी। 2012 में केंद्रीय जल आयोग ने जलाशयों और तालाबों में जल उपलब्धता के जो आंकड़े दिए थे, उससे अंदाजा लगाया गया था कि आनेवाले कुछ सालों में पानी और बिजली की भयावह स्थिति का सामना करना पड़ेगा। कमोबेश वैसी कुछ स्थिति बनी भी। करीब डेढ़ दशक पहले सरकार ने बारिश के पानी से जितना विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा था, वह पूरा नहीं हो सका। कारण, पानी का संग्रहण नहीं हो पाना रहा। पानी बचाने की अहमियत को हमें समय रहते समझना होगा वरना स्थिति भयावह हो सकती है। गौर करने वाला पहलू यही है कि अगर पूर्व के निर्मित सभी जलाशय जीवित अवस्था में होते तो मौजूदा समय में हो रही बारिश का पानी संग्रह किया जा सकता था। हिंदुस्तान में 76 प्रमुख जलाशय हैं जो तकरीबन सूखने के कगार पर पहुंच चुके हैं।
इन 76 जलाशयों में से जिन 31 जलाशयों से विद्युत उत्पादन किया जाता है उनमें पानी की कमी के चलते विद्युत उत्पादन में लगातार कमी हो रही है। जिन जलाशयों में पानी की कमी है उनमें उत्तर प्रदेश के माताटीला बांध व रिहन्द, मध्य प्रदेश के गांधी सागर व तवा, झारखंड के तेनुघाट, मेथन, पंचेतहित व कोनार, महाराष्ट्र के कोयना, ईसापुर, येलदरी व ऊपरी तापी, राजस्थान का राणा प्रताप सागर, कर्नाटक का वाणी विलास सागर, उड़ीसा का रेंगाली, तमिलनाडु का शोलायार, त्रिपुरा का गुमटी और पश्चिम बंगाल के मयुराक्षी व कंग्साबती जलाशय शामिल हैं। जलाशयों को खंडित करने में मानवीय हिमाकत तो है ही, सरकारी तंत्र भी बराबर का भागीदार है। किसानों की जमीन पर जो जलाशय बनाए गए थे उनकी स्थिति भी काफी खराब है। जलाशयों को बनाते समय हजारों एकड़ वनों की कटाई की गई थी और काफी संख्या में बस्तियों को भी उजाड़ा गया था इसलिए पर्यावरण का संतुलन बिगड़ना लाजिमी था। प्राकृतिक संसाधनों के अथाह दोहन ने हालात और भी खराब कर दिए। रही-सही कसर ग्लोबल वार्मिंग के खतरों ने पूरी कर दी। मौसम में जो बदलाव आया उससे तो सभी वाकिफ हैं और वर्षा में दिन प्रतिदिन की कमी आती जा रही है।
लगातार कम बारिश के चलते माताटीला सहित चार जलाशय अपनी स्थापित जल क्षमता पर्याप्त नहीं होने के कारण न तो विद्युत उत्पादन के निर्धारित लक्ष्य को पूरा कर पाए और न ही सिंचाई व पेयजल की तय क्षमताओं पर खरे उतरे। ये सच है कि जल ही जीवन है और इसके बगैर किसी का जीवन संभव नहीं लेकिन इसके अथाह दोहन ने जहां कई तरह से पर्यावरणीय संतुलन पर गंभीर असर डाला है वहीं कई मानव निर्मित संयंत्र भी दिन-ब-दिन मृतप्राय होते जा रहे हैं। दिन प्रतिदिन गहराते जा रहे पर्यावरण संकट ने पूरी मानव जाति को हिलाकर रख दिया है। स्वयं अपने देश में तो नौबत यहां तक आ गई है कि नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर कई राज्यों में हमेशा ठनी रहती है। इन हालात को देखकर यह अवधारणा सच हो या गलत लेकिन स्थिति पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो हम कुदरती पैदावार से लेकर विद्युत उत्पादन से महरूम होने के साथ- साथ प्राकृतिक असंतुलन की मार झेलने को भी विवश होंगे। मौजूदा समय में हो रही बेमौसम की बारिश का पानी जिस कदर बर्बाद हुआ है उसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ेगा।
अगर जलाशय जीवित हालत में होते तो सारा पानी संग्रह हो जाता। चार जलाशय तो ऐसे हैं जो पिछले एक साल से लगातार पानी की कमी के कारण लक्ष्य से भी कम विद्युत उत्पादन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के रिहंद जलाशय की स्थापित क्षमता 399 मेगावाट है। इसके लिए अप्रैल 2005 से जनवरी 2006 तक 938 मिलियन यूनिट ही हो सका। मध्य प्रदेश के गांधी सागर में भी इसी अवधि के लक्ष्य 235 मिलियन युनिट की तुलना में मात्र 128 मिलियन युनिट और राजस्थान के राणा प्रताप सागर में 271 मिलियन युनिट के लक्ष्य की तुलना में सिर्फ 203 मिलियन युनिट विद्युत का उत्पादन हो सका। अगर इनमें गंभीरता से मूल्यांकन कर सुधार नहीं किया गया तो पूरे राष्ट्र को जल, विद्युत और न जाने किन- किन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा, जिनसे निपटना सरकार और प्रशासन के सामर्थ्य की बात नहीं रह जाएगी।
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